रोहतक : हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसोसिएशन ने बोर्ड के गिरते परीक्षा परिणाम पर चिंता जाहिर की है। सरकारी स्कूलों के गिरते परीक्षा परिणाम के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए, पर भी शिक्षकों ने मंथन किया। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय गांधी कैंप में हुई बैठक में शिक्षा व्यवस्था पर जमकर सवाल उठाए गए। इसमें आठवीं तक विद्यार्थियों को फेल नहीं करना मुख्य है।
हसला जिला प्रधान बलजीत सहारण ने कहा कि कक्षा 10वीं 12वीं के परीक्षा परिणाम बेहद चिंताजनक रहे हैं। इस गिरते परिणाम के लिए असल जिम्मेदार कौन है, यह जानना जरूरी है। क्या अध्यापक वर्ग दोषी है या शिक्षा विभाग की नीतियां? शिक्षा विभाग के अधिकारियों का दृष्टिकोण या फिर विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी और उनके अभिभावकों की अज्ञानता? हमारे शिक्षा सिस्टम ने अभिभावकों के मन में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। यही नहीं सरकार विभाग ने आठवीं तक बच्चों को फेल नहीं करने का निर्देश दिया है। यह शिक्षा नीति का सबसे गलत फैसला लगता है। इसने पूरी शिक्षा व्यवस्था को खोखला कर दिया है। जब बच्चा आठवीं तक बगैर पढ़े पास होगा तो नौवीं दसवीं में वह गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों में कैसे पास होगा। वे उसे समझ ही नहीं आएंगे। विभाग की नीतियों के कारण अध्यापक वर्ग आहत है। उनके कार्यक्षेत्र वितरण में भ्रम बना हुआ है। प्राध्यापक वर्ग की नियुक्ति 11वीं 12वीं के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए की गई थी। इसके लिए बीएड की जरूरत नहीं थी। सरकार ने मनमानी करते हुए नौवीं दसवीं कक्षाएं भी प्राध्यापक वर्ग पर थोप दी। इसके लिए बीएड होना जरूरी है। कक्षा 11वीं 12वीं में प्रत्येक विषय के प्राध्यापक अलग होते हैं, जबकि नौवीं दसवीं कक्षा के लिए तीन से पांच प्राध्यापकों की जरूरत होती है। मास्टर वर्ग में एक ही व्यक्ति एसएस अंग्रेजी पढ़ा सकता है। निजी विद्यालयों की स्थिति भी 134ए के तहत हुई परीक्षा से सामने गई है। इसमें पांच प्रतिशत विद्यार्थी ही पास हुए हैं। विभाग जल्द स्पष्ट योजना बनाकर स्थिति स्पष्ट करे, ताकि भ्रम दूर हो और बेहतर कार्य हो सके। इस मौके पर अनेक शिक्षक मौजूद रहे।
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हसला जिला प्रधान बलजीत सहारण ने कहा कि कक्षा 10वीं 12वीं के परीक्षा परिणाम बेहद चिंताजनक रहे हैं। इस गिरते परिणाम के लिए असल जिम्मेदार कौन है, यह जानना जरूरी है। क्या अध्यापक वर्ग दोषी है या शिक्षा विभाग की नीतियां? शिक्षा विभाग के अधिकारियों का दृष्टिकोण या फिर विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी और उनके अभिभावकों की अज्ञानता? हमारे शिक्षा सिस्टम ने अभिभावकों के मन में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। यही नहीं सरकार विभाग ने आठवीं तक बच्चों को फेल नहीं करने का निर्देश दिया है। यह शिक्षा नीति का सबसे गलत फैसला लगता है। इसने पूरी शिक्षा व्यवस्था को खोखला कर दिया है। जब बच्चा आठवीं तक बगैर पढ़े पास होगा तो नौवीं दसवीं में वह गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों में कैसे पास होगा। वे उसे समझ ही नहीं आएंगे। विभाग की नीतियों के कारण अध्यापक वर्ग आहत है। उनके कार्यक्षेत्र वितरण में भ्रम बना हुआ है। प्राध्यापक वर्ग की नियुक्ति 11वीं 12वीं के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए की गई थी। इसके लिए बीएड की जरूरत नहीं थी। सरकार ने मनमानी करते हुए नौवीं दसवीं कक्षाएं भी प्राध्यापक वर्ग पर थोप दी। इसके लिए बीएड होना जरूरी है। कक्षा 11वीं 12वीं में प्रत्येक विषय के प्राध्यापक अलग होते हैं, जबकि नौवीं दसवीं कक्षा के लिए तीन से पांच प्राध्यापकों की जरूरत होती है। मास्टर वर्ग में एक ही व्यक्ति एसएस अंग्रेजी पढ़ा सकता है। निजी विद्यालयों की स्थिति भी 134ए के तहत हुई परीक्षा से सामने गई है। इसमें पांच प्रतिशत विद्यार्थी ही पास हुए हैं। विभाग जल्द स्पष्ट योजना बनाकर स्थिति स्पष्ट करे, ताकि भ्रम दूर हो और बेहतर कार्य हो सके। इस मौके पर अनेक शिक्षक मौजूद रहे।