जागरण संवाददाता,
रेवाड़ी: एडेड स्कूल स्टाफ को सरकार द्वारा अपने आधीन लेने से जिला के 6 बड़े
स्कूलों में बड़े बदलाव होंगे। सरकार के इस फैसले से वे शिक्षक तो खुश हैं
ही जो सरकारी हो जाएंगे वहीं मैनेजमेंट के लोगों को भी इससे राहत मिलने
वाली है।
लेकिन इन दोनों के अलावा अगर किसी को नुकसान होने वाला है तो वह उन हजारों बच्चों को होगा जो एडेड स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। इन बच्चों की फीस तीन से चार गुना तक महंगी हो जाएगी।
अभी नियमों में फंसे हैं एडेड स्कूल
हरियाणा के सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत स्टाफ को शिक्षा विभाग ने अपने आधीन ले लिया है। प्रदेश सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी
भी दे दी है। सरकार की इस मंजूरी का लाभ जिले के 6 सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत करीब 60 शिक्षकों व गैर शिक्षक कर्मचारियों को मिलने वाला है। अभी तक नियमों के अनुसार एडेड स्कूलों के स्टाफ का 75 प्रतिशत वेतन सरकार देती है तथा बाकी का 25 प्रतिशत वेतन का इंतजाम मैनेजमेंट को अपने स्तर पर ही करना होता है। एडेड स्कूल अभी तक सरकारी नियमों के दायरे में रहकर काम कर रहे थे
जिसके चलते ही वे अपने यहां पढ़ने वाले बच्चों से एक सीमा तक की फीस ले सकते थे। ऐसे में सरकार के इस फैसले से वे एडेड स्कूलों में कार्यरत स्टाफ तो खुश हैं ही साथ ही साथ इन स्कूलों की प्रबंधन समिति भी राहत की सांस ले रही है। ये स्कूल अब पूरी तरह से सरकारी नकेल से आजाद हो जाएंगे और निजी स्कूलों की तरह ही काम करेंगे। फिर इनपर न फीस की नकेल होगी और न ही किताबों व स्कूल ड्रेस को लेकर अन्य कोई सरकारी जवाबदेही। ऐसे में मुसीबत खड़ी होनी है तो वह होगी इन 6 एडेड स्कूलों में पढ़ने वाले 4 हजार के लगभग विद्यार्थियों के लिए। इन विद्यार्थियों को जहां अब तक नाममात्र की फीस देनी पड़ती थी वहीं अब इनपर भी निजी स्कूलों की फीस, किताबों व ड्रेस का वजन डाला जाएगा।
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इस बदलाव से निश्चित तौर पर प्रबंधन व विद्यार्थी दोनों को लाभ होगा। वर्तमान में जो शिक्षक कार्यरत हैं उनकी तनख्वाह 50 हजार से अधिक है जिसका 25 प्रतिशत हिस्सा हमें देना पड़ता है। इससे कम सैलेरी में हम बेहतर अध्यापक लेकर आएंगे जिससे शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। विद्यार्थियों पर अधिक बोझ नहीं डाला जाएगा।
-रामकिशन भालखी, प्रधान ¨हदू स्कूल प्रबंधन समिति।
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ये तो सरकार का निर्णय है। स्कूल स्टॉफ अगर सरकारी स्कूलों में चला जाता है तो संस्था अपने अनुसार शिक्षण संस्थान को चलाएगी। सरकार की ग्रांट बंद होने के बाद भी हम अपने ध्येय से भटकेंगे नहीं तथा बच्चों को बेहतर संसाधन व बेहतर शिक्षा देने का हरसंभव प्रयास करेंगे। फीस की कुछ बढ़ोतरी संभव है लेकिन यह भी इतनी नहीं होगी कि अभिभावकों पर अधिक बोझ पड़े।
चेतराम सैनी, प्रधान सैनी सभा।
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सरकार ने हमें सालों से लटकाया हुआ था। अब निर्णय आया है तो यह राहत देने वाला है। राजस्थान व उत्तराखंड की तरह हम लोगों को भी सरकारी स्कूलों में जिम्मेदारी शीघ्रता से सौंपी जाए ताकि फिर से मामला लटके नहीं।
रोहिताश शर्मा, जिला प्रधान, सहायता प्राप्त विद्यालय अध्यापक संघ।
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मेरी बेटी सहायता प्राप्त स्कूल में ही 11वीं कक्षा में पढ़ती है। अभी एडेड स्कूल में होने के बावजूद भी 800 रुपये फीस ली जाती है। स्कूल जब पूरी तरह से प्राइवेट हो जाएगा तो फीस निश्चित तौर पर ज्यादा ही बढ़ाई जाएगी। ऐसे में अभिभावकों पर तो वजन पड़ना ही है।
रजनी वर्मा, अभिभावक, कायस्थवाड़ा।
लेकिन इन दोनों के अलावा अगर किसी को नुकसान होने वाला है तो वह उन हजारों बच्चों को होगा जो एडेड स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। इन बच्चों की फीस तीन से चार गुना तक महंगी हो जाएगी।
अभी नियमों में फंसे हैं एडेड स्कूल
हरियाणा के सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत स्टाफ को शिक्षा विभाग ने अपने आधीन ले लिया है। प्रदेश सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी
भी दे दी है। सरकार की इस मंजूरी का लाभ जिले के 6 सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत करीब 60 शिक्षकों व गैर शिक्षक कर्मचारियों को मिलने वाला है। अभी तक नियमों के अनुसार एडेड स्कूलों के स्टाफ का 75 प्रतिशत वेतन सरकार देती है तथा बाकी का 25 प्रतिशत वेतन का इंतजाम मैनेजमेंट को अपने स्तर पर ही करना होता है। एडेड स्कूल अभी तक सरकारी नियमों के दायरे में रहकर काम कर रहे थे
जिसके चलते ही वे अपने यहां पढ़ने वाले बच्चों से एक सीमा तक की फीस ले सकते थे। ऐसे में सरकार के इस फैसले से वे एडेड स्कूलों में कार्यरत स्टाफ तो खुश हैं ही साथ ही साथ इन स्कूलों की प्रबंधन समिति भी राहत की सांस ले रही है। ये स्कूल अब पूरी तरह से सरकारी नकेल से आजाद हो जाएंगे और निजी स्कूलों की तरह ही काम करेंगे। फिर इनपर न फीस की नकेल होगी और न ही किताबों व स्कूल ड्रेस को लेकर अन्य कोई सरकारी जवाबदेही। ऐसे में मुसीबत खड़ी होनी है तो वह होगी इन 6 एडेड स्कूलों में पढ़ने वाले 4 हजार के लगभग विद्यार्थियों के लिए। इन विद्यार्थियों को जहां अब तक नाममात्र की फीस देनी पड़ती थी वहीं अब इनपर भी निजी स्कूलों की फीस, किताबों व ड्रेस का वजन डाला जाएगा।
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इस बदलाव से निश्चित तौर पर प्रबंधन व विद्यार्थी दोनों को लाभ होगा। वर्तमान में जो शिक्षक कार्यरत हैं उनकी तनख्वाह 50 हजार से अधिक है जिसका 25 प्रतिशत हिस्सा हमें देना पड़ता है। इससे कम सैलेरी में हम बेहतर अध्यापक लेकर आएंगे जिससे शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। विद्यार्थियों पर अधिक बोझ नहीं डाला जाएगा।
-रामकिशन भालखी, प्रधान ¨हदू स्कूल प्रबंधन समिति।
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ये तो सरकार का निर्णय है। स्कूल स्टॉफ अगर सरकारी स्कूलों में चला जाता है तो संस्था अपने अनुसार शिक्षण संस्थान को चलाएगी। सरकार की ग्रांट बंद होने के बाद भी हम अपने ध्येय से भटकेंगे नहीं तथा बच्चों को बेहतर संसाधन व बेहतर शिक्षा देने का हरसंभव प्रयास करेंगे। फीस की कुछ बढ़ोतरी संभव है लेकिन यह भी इतनी नहीं होगी कि अभिभावकों पर अधिक बोझ पड़े।
चेतराम सैनी, प्रधान सैनी सभा।
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सरकार ने हमें सालों से लटकाया हुआ था। अब निर्णय आया है तो यह राहत देने वाला है। राजस्थान व उत्तराखंड की तरह हम लोगों को भी सरकारी स्कूलों में जिम्मेदारी शीघ्रता से सौंपी जाए ताकि फिर से मामला लटके नहीं।
रोहिताश शर्मा, जिला प्रधान, सहायता प्राप्त विद्यालय अध्यापक संघ।
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मेरी बेटी सहायता प्राप्त स्कूल में ही 11वीं कक्षा में पढ़ती है। अभी एडेड स्कूल में होने के बावजूद भी 800 रुपये फीस ली जाती है। स्कूल जब पूरी तरह से प्राइवेट हो जाएगा तो फीस निश्चित तौर पर ज्यादा ही बढ़ाई जाएगी। ऐसे में अभिभावकों पर तो वजन पड़ना ही है।
रजनी वर्मा, अभिभावक, कायस्थवाड़ा।