संवाद सहयोगी, शाहाबाद : शाहाबाद में अतिथि अध्यापकों की ओर से नियमितीकरण
की मांग को लेकर प्रदेश के सभी मंत्रियों के आवास पर दिया जा रहा क्रमिक
अनशन दसवें दिन भी जारी रहा।
शुक्रवार को बबैन खण्ड के अतिथि अध्यापक सुशील कुमार, पदम कुमार, संदीप सैनी, गुरप्रीत ¨सह व सुरेन्दर अनशन पर बैठे। अनशन पर बैठे अध्यापकों ने कहा कि जब तक प्रदेश सरकार जब तक हटाये गए जेबीटी अतिथि अध्यापकों का समायोजन व अन्य मांगों को नहीं मान लेती तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। प्रदेश प्रवक्ता राजेश शर्मा ने बताया कि प्रदेश सरकार जहां अतिथि अध्यापकों को नियमित करने के अपने वायदे से मुकर रही है वहीं माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के प्रति भी दोहरा मापदंड अपना रही है।उन्होंने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कच्चे कर्मचारी को भी नियमित कर्मचारी के समान वेतन देने का आदेश दिया है परंतु प्रदेश सरकार इन आदेशों पर दोहरा मापदंड अपना रही है।सरकार कच्चे कर्मचारियों को इस लाभ से वंचित रखने के लिए कच्चे कर्मचारियों की भी श्रेणियां बना रही है जोकि कच्चे कर्मचारियों का सरासर शोषण है। उन्होंने बताया कि सरकार के नुमाइंदों का यह कहना कि यदि कोई विभाग अपने कार्यक्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को समान काम के बदले समान वेतन देना चाहता है तो वह सरकार से इसकी सिफारिश कर सकता है दर्शाता है कि सरकार कोर्ट का आदेश लागू ही नहीं करना चाहती क्योंकि यदि सरकार की नीति और नियत साफ हो तो वह उच्चतम न्यायालय का लाभ सब को दे सकती है।
शुक्रवार को बबैन खण्ड के अतिथि अध्यापक सुशील कुमार, पदम कुमार, संदीप सैनी, गुरप्रीत ¨सह व सुरेन्दर अनशन पर बैठे। अनशन पर बैठे अध्यापकों ने कहा कि जब तक प्रदेश सरकार जब तक हटाये गए जेबीटी अतिथि अध्यापकों का समायोजन व अन्य मांगों को नहीं मान लेती तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। प्रदेश प्रवक्ता राजेश शर्मा ने बताया कि प्रदेश सरकार जहां अतिथि अध्यापकों को नियमित करने के अपने वायदे से मुकर रही है वहीं माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के प्रति भी दोहरा मापदंड अपना रही है।उन्होंने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कच्चे कर्मचारी को भी नियमित कर्मचारी के समान वेतन देने का आदेश दिया है परंतु प्रदेश सरकार इन आदेशों पर दोहरा मापदंड अपना रही है।सरकार कच्चे कर्मचारियों को इस लाभ से वंचित रखने के लिए कच्चे कर्मचारियों की भी श्रेणियां बना रही है जोकि कच्चे कर्मचारियों का सरासर शोषण है। उन्होंने बताया कि सरकार के नुमाइंदों का यह कहना कि यदि कोई विभाग अपने कार्यक्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को समान काम के बदले समान वेतन देना चाहता है तो वह सरकार से इसकी सिफारिश कर सकता है दर्शाता है कि सरकार कोर्ट का आदेश लागू ही नहीं करना चाहती क्योंकि यदि सरकार की नीति और नियत साफ हो तो वह उच्चतम न्यायालय का लाभ सब को दे सकती है।