द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पहले चरण में इस व्यवस्था पर करीब 30 लाख रुपए का खर्च आया है. इस बारे में पंजाब के स्कूली शिक्षा के महानिदेशक (डीजीएसई) प्रशांत गोयल कहते हैं, ‘तकनीक के मौजूदा दौर में रजिस्टर पर हस्ताक्षर करके हाजिरी लगाने का कोई तुक नहीं रहा. तकनीक के युग में एक सॉफ्टवेयर इस काम को बेहतर और तेज ढंग से कर रहा है. बायोमैट्रिक व्यवस्था से स्कूलों में अनुशासन बढ़ेगा और फर्जी हाजिरियों पर रोक लगेगी.’
इधर शिक्षकों ने इस व्यवस्था की आलोचना की है. उनका कहना है कि बायोमैट्रिक मशीनें सिर्फ स्कूलों में ही नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के मुख्यालय में भी होनी चाहिए. पंजाब के सरकारी शिक्षक यूनियन के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह चहल कहते हैं, ‘यह व्यवस्था पैसों की बर्बादी है. सरकार को हाजिरी की मशीनों पर खर्च करने से पहले स्कूलों की प्राथमिक जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए. सफाईकर्मी न होने से स्कूलों में गंदगी रहती है. बच्चों को बैठने के लिए बेंचों की कमी है. इसके अलावा सरकार बच्चों की वर्दी और किताबों पर पैसा खर्च करती तो अच्छा रहता. वैसे भी शिक्षकों के काम और उनके आने-जाने पर निगरानी के लिए स्कूलों में प्रधानाचार्य मौजूद हैं.’