अनशन के बावजूद साइकोलॉजी टीचर भूगोल पढ़ाएं तो

"स्कूल में टीचर की यही संख्या रही तो, 12वीं की बोर्ड की परीक्षा मुझे प्राइवेट से देनी पड़ेगी."
ये शब्द हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले में 11वीं में पढ़ने वाली सुजाता के हैं. सुजाता, दिल्ली से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर हरियाणा के रेवाड़ी शहर के उसी स्कूल में पढ़ती हैं, जो इसी साल मई महीने में सुर्ख़ियों में था.

गांव के इस स्कूल को अपग्रेड कराने के मुद्दे पर 13 छात्राएं अनशन पर थीं. सुजाता भी उनमें से एक थी.

शिक्षकों की कमी

सुजाता बारहवीं प्राइवेट से क्यों करेंगी, इसके पीछे की वजह भी बताती हैं. उनके मुताबिक, "10वीं पास करने के बाद उन्होंने 11वीं में आर्ट्स लिया. लेकिन स्कूल में साइकोलॉजी की टीचर उन्हें भूगोल पढ़ाती हैं."
ये शिकायत अकेले सुजाता की नहीं है. जब 11वीं में पढ़ने वाले दूसरे छात्रों से हमने बात की तो पता चला, आर्ट्स में पढ़ने वाले नौ बच्चों में से किसी ने अर्थशास्त्र या इतिहास विषय नहीं लिया है. वजह ये कि इन दोनों विषयों के यहां शिक्षक ही नहीं है.

10वीं में फ़ेल होने की वजह से स्कूल छोड़ चुकी निकिता मानती हैं, "शिक्षक होते तो मैं अभी स्कूल में होती. लेकिन अब इस साल प्राइवेट से 10वीं की परीक्षा दूंगी." निकिता का मानना है कि जब स्कूल में कोई पढ़ाने वाला ही नहीं तो घर पर पढ़ूं या स्कूल में बात तो बराबर ही है."
लेकिन स्कूल प्रशासन इससे बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं दिखा. स्कूल में प्रिंसिपल छुट्टी पर थे. स्कूल इंचार्ज धर्मवीर सिंह से हमारी मुलाकात हुई. वो खुद 11वीं के बच्चों को अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं.
धर्मवीर सिंह के मुताबिक, "स्कूल में गणित, संस्कृत, सामाजिक विज्ञान और फ़िज़िकल एजुकेशन के टीचर हैं ही नहीं. इन सबको मिला कर स्कूल में फिलहाल आठ पोस्ट खाली हैं."
गांव में लड़कियों के अनशन के बाद इसी साल मई में हरियाणा सरकार हरकत में आई थी और स्कूल को अपग्रेड करने का आदेश जारी किया था.

आर्ट्स की ही होती है पढ़ाई

लेकिन स्कूल को अपग्रेड करने के नाम पर क्लास की संख्या बढ़ा दी गई है, शिक्षकों की नहीं. स्कूल में 11वीं में केवल आर्ट्स का विषय ही है. सांइस और कॉमर्स की पढ़ाई यहां आज भी नहीं हो रही.
नौवीं में पढ़ने वाली अनामिका की मानें तो उसने तो स्कूल छोड़ने का मन बना लिया है. वो कहती हैं, "बिना टीचर के इस स्कूल में पढ़ने का कोई फ़ायदा नहीं. मुझे तो 11वीं में साइंस लेना है इसलिए स्कूल छोड़ना ही पड़ेगा."

11वीं में पढ़ने वाली चाहत कहतीं है, "केमिस्ट्री और फ़िज़िक्स के दो टीचर स्कूल में होते तो हमारे दूसरे दोस्त भी इसी स्कूल में होते."
रेवाड़ी के गोठड़ा टप्पा डहिना माध्यमिक विद्यालय में इस साल दसवीं में 18 छात्र पास हुए थे, लेकिन केवल नौ ही स्कूल में रह पाए. बाक़ियों की दिलचस्पी साइंस में थी. तो 12वीं की पढ़ाई के लिए उनकों गांव से तीन किलोमीटर दूर कंवाली गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल जाना पड़ता है.
स्कूल के इंचार्ज धर्मवीर सिंह बताते हैं, "स्कूल अपग्रेड होने के बाद सिस्टम में हमने साइंस लेने वाले छात्रों के जब नाम डाले तो सिस्टम ने स्वीकार ही नहीं किया. तभी हमें पता चला की केवल आर्ट्स में छात्रों का दाखिला होगा."

साइंस की पढ़ाई करने के लिए कंवाली गांव जाने वाली अलका से हमने बात की. अनशन में अलका ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. अलका का कहना है, "अनशन से कुछ फ़र्क नहीं पड़ा. आज भी समस्या जस की तस है."

अलका के साथ स्कूल से वापस आ रही बाकी छात्राओं को भी न तो मीडिया से कोई आस है और न ही स्थानीय प्रशासन से.
रास्ते में आज भी उन्हें मनचले लड़कों का उसी तरह से सामना करना पड़ता है जैसे पहले करना पड़ता था. सभी लोग दिक्कतें गिना रहे हैं और हल कहीं नहीं दिखता.
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