चंडीगढ़ : हरियाणा में सरकारी नौकरी में एससी वर्ग को प्रमोशन के दौरान 20 प्रतिशत आरक्षण देने पर रोक अभी जारी रहेगी। हाईकोर्ट की एकल बेंच ने 27 मई को हरियाणा सरकार के आरक्षण देने पर रोक लगा दी थी। कार्यवाहक चीफ जस्टिस के निर्देश पर मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस राजीव भल्ला पर आधारित खंडपीठ ने शुक्रवार को एकल बैंच के आदेश को जारी रखा। कोर्ट ने सरकार को चेताया कि वह एकल बैंच के आदेश के अनुसार ही काम करे, अगर किसी को एससी वर्ग को प्रमोशन के दौरान 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है
तो हाईकोर्ट मुख्य सचिव को तलब कर सकता है। बैंच ने मामले को बहस के लिए 28 नवंबर तक स्थगित कर दिया।एससी वर्ग को 20 प्रतिशत देने की प्रदेश सरकार ने लागू की थी नीतिदिनेश कुमार व अन्य की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि हरियाणा सरकार द्वारा गलत तरीके से प्रमोशन में एससी वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए सरकार द्वारा 14 फरवरी 2013 को वरिष्ठ आइएएस अधिकारी पी राघेवंद्र की एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी को जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे प्रदेश में एससी वर्ग के लोगों के पिछड़ेपन और उनके प्रतिनिधित्व के बारे में रिपोर्ट तैयार करें क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के अनुसार प्रमोशन के लिए कमेटी का गठन करना जरूरी है। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस रिपोर्ट में कहा गया कि प्रदेश में अब भी एससी पिछड़े हुए हैं। इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए हरियाणा सरकार ने 15 मई 2015 को नोटिफिकेशन जारी कर एससी वर्ग के लोगों के लिए प्रमोशन में 20 प्रतिशत के आरक्षण का प्रावधान कर दिया। इस प्रावधान के तहत उन्हें 1 अप्रैल 2013 से इसका लाभ दिया जाना तय किया गया। याचिकाकर्ता के वकील नरेंद्र हुड्डा ने बताया कि इस कमेटी ने सही डाटा एकत्र नहीं किया। 20 प्रतिशत आरक्षण प्रमोशन में और पहले ही नियुक्ति में 22 प्रतिशत से ज्यादा है ऐसे में कुल मिलाकर यही 42 प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगा और 27 प्रतिशत ओबीसी। ऐसे में तो जनरल वर्ग के साथ यह अन्याय है। हुड्डा ने बैंच को बताया कि देश के अधिकतर हाईकोर्ट इस तरह की नीति को रद्द कर चुके है। हाईकोर्ट ने इसे गंभीर विषय मानते हुए सरकार की इस आरक्षण नीति पर रोक लगाते हुए सरकार से जवाब तलब किया है।
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तो हाईकोर्ट मुख्य सचिव को तलब कर सकता है। बैंच ने मामले को बहस के लिए 28 नवंबर तक स्थगित कर दिया।एससी वर्ग को 20 प्रतिशत देने की प्रदेश सरकार ने लागू की थी नीतिदिनेश कुमार व अन्य की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि हरियाणा सरकार द्वारा गलत तरीके से प्रमोशन में एससी वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए सरकार द्वारा 14 फरवरी 2013 को वरिष्ठ आइएएस अधिकारी पी राघेवंद्र की एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी को जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे प्रदेश में एससी वर्ग के लोगों के पिछड़ेपन और उनके प्रतिनिधित्व के बारे में रिपोर्ट तैयार करें क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के अनुसार प्रमोशन के लिए कमेटी का गठन करना जरूरी है। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस रिपोर्ट में कहा गया कि प्रदेश में अब भी एससी पिछड़े हुए हैं। इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए हरियाणा सरकार ने 15 मई 2015 को नोटिफिकेशन जारी कर एससी वर्ग के लोगों के लिए प्रमोशन में 20 प्रतिशत के आरक्षण का प्रावधान कर दिया। इस प्रावधान के तहत उन्हें 1 अप्रैल 2013 से इसका लाभ दिया जाना तय किया गया। याचिकाकर्ता के वकील नरेंद्र हुड्डा ने बताया कि इस कमेटी ने सही डाटा एकत्र नहीं किया। 20 प्रतिशत आरक्षण प्रमोशन में और पहले ही नियुक्ति में 22 प्रतिशत से ज्यादा है ऐसे में कुल मिलाकर यही 42 प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगा और 27 प्रतिशत ओबीसी। ऐसे में तो जनरल वर्ग के साथ यह अन्याय है। हुड्डा ने बैंच को बताया कि देश के अधिकतर हाईकोर्ट इस तरह की नीति को रद्द कर चुके है। हाईकोर्ट ने इसे गंभीर विषय मानते हुए सरकार की इस आरक्षण नीति पर रोक लगाते हुए सरकार से जवाब तलब किया है।
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