मेवात । हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग के
दावों की पोल खोलने के लिए मेवात का खेड़ली नूंह का सरकारी स्कूल ही काफी
है। यहां वर्ष 2007 में मिडिल स्कूल बनाया गया था। मिडिल स्कूल पर सर्व
शिक्षा अभियान के तहत लाखों रूपये की राशि खर्च कर 9 कमरों का निर्माण
कराया गया।
लेकिन शिक्षा विभाग की तरफ से शिक्षक नहीं लगाए गए। जिसके कारण मिडिल स्कूल के भवन पर पिछले 7 सालों से ताला लगा हुआ है। स्कूल भवन के दरवाजों पर जाले छाए हुए है। स्कूल परिसर को जंगली घास ने अपने कब्जे में लिया हुआ है। वहीं अध्यापक नहीं होने के कारण मजबूरी में प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों को मिडिल स्कूल के बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। मिडिल स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों की सरकारी रिकार्ड में 62 संख्या दर्ज है। लेकिन अध्यापक न होने से बच्चों की संख्या घट कर मात्र 18 रह गई है। स्कूल में बने शौचालय पर पानी के अभाव में ताला लटका हुआ है।जिसके कारण स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाली बेटियों को शौच करने के लिए खुले में जाना पड़ रहा है। बेटियों को स्कूल में अध्यापक न होने का मलाल है। बेटियों ने बताया कि अभिभावक बड़ी मुश्किल से गांव में बने सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ने भेजते है। लेकिन अध्यापक व मूल-भूत सुविधाओं की कमी के कारण अधिकांश लड़कियां स्कूल पढ़ने आने के बजाय घर बैठ गई है। उन्होंने बताया लड़कियों को मजबूरी में फर्श पर बैठ कर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है। इस संबंध में जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सुमेर सिंह का कहना है कि इस मामले की जांच कर कार्रवाई की जाएगी।
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लेकिन शिक्षा विभाग की तरफ से शिक्षक नहीं लगाए गए। जिसके कारण मिडिल स्कूल के भवन पर पिछले 7 सालों से ताला लगा हुआ है। स्कूल भवन के दरवाजों पर जाले छाए हुए है। स्कूल परिसर को जंगली घास ने अपने कब्जे में लिया हुआ है। वहीं अध्यापक नहीं होने के कारण मजबूरी में प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों को मिडिल स्कूल के बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। मिडिल स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों की सरकारी रिकार्ड में 62 संख्या दर्ज है। लेकिन अध्यापक न होने से बच्चों की संख्या घट कर मात्र 18 रह गई है। स्कूल में बने शौचालय पर पानी के अभाव में ताला लटका हुआ है।जिसके कारण स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाली बेटियों को शौच करने के लिए खुले में जाना पड़ रहा है। बेटियों को स्कूल में अध्यापक न होने का मलाल है। बेटियों ने बताया कि अभिभावक बड़ी मुश्किल से गांव में बने सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ने भेजते है। लेकिन अध्यापक व मूल-भूत सुविधाओं की कमी के कारण अधिकांश लड़कियां स्कूल पढ़ने आने के बजाय घर बैठ गई है। उन्होंने बताया लड़कियों को मजबूरी में फर्श पर बैठ कर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ रही है। इस संबंध में जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सुमेर सिंह का कहना है कि इस मामले की जांच कर कार्रवाई की जाएगी।
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