जेबीटी की उम्मीद : स्कूलों को जल्द नए शिक्षक मिलेंगे और फिर से सरकारी स्कूलों के अच्छे दिन आएंगे
पांच साल से रोजगार की उम्मीद में अटके जेबीटी शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। शीर्ष अदालत ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट को यह मामला दो माह में निपटाने के आदेश दिए हैं।
इससे जेबीटी शिक्षकों की रोजगार की उम्मीदें फिर जग गई हैं। 2011 में करीब 9500 पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। उसके बाद 2013 में 3200 से अधिक शिक्षकों की भर्ती शुरू हुई थी। इसके बाद प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया लगातार कानूनी पेचीदगी और दांव-पेंच में उलझकर रह गई। स्थिति यह हुई कि प्रदेश में 16 हजार से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हो चुके हैं और अतिथि अध्यापकों के भरोसे ही पांच साल से शिक्षण व्यवस्था चल रही है। कई स्कूलों में तो आधे से अधिक पद खाली पड़े हंै। कुछ स्कूल ऐसे हैं कि एक भी शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। या यूं कहें कि जब कोई है ही नहीं तो व्यवस्था में सुधार की जिम्मेवारी व कार्रवाई तो दूर की कौड़ी ही रह जाएगी।
प्रदेश में भर्ती प्रक्रिया लगातार विवादों का कारण बनती रही है। शिक्षक ही नहीं, कर्मचारी चयन आयोग व हरियाणा लोकसेवा आयोग की भर्तियों का भी यही हश्र हुआ। स्पष्ट नीति के अभाव में लोगों को नियुक्ति के लिए बरसों इंतजार करना पड़ा और अदालती लड़ाई लड़नी पड़ी। नीति में अस्पष्टता व चहेतों को खुश करने की नीति के तहत सरकारें इस तरह का रवैया अपनाती रहीं और इसका नुकसान यह हुआ कि पूरी व्यवस्था ही पंगु होने के कगार पर पहुंच गई। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की केवल हवा में बातें ही होती रहीं। 25 लोगों की शिकायतों के आधार पर यह नियुक्तियां पांच साल तक अटक गईं। सरकार व चयन आयोग उनकी शिकायतों का समाधान शायद तुरंत करते तो उन्हें इस तरह कानूनी लड़ाई न लड़नी पड़ती। कुछ दावेदारों ने तो अपने अंगूठे की जांच प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लिया। अब उन्हें अंतिम अवसर दिया जा रहा है। आवश्यक है कि जिम्मेदार एजेंसियों तमाम प्रक्रियाओं को तेजी से निपटाएं ताकि फिर कोई कानूनी पेचीदगी न अटके और स्कूलों को शिक्षक मिल सकें। साथ ही भविष्य में नियुक्तियों के लिए स्पष्ट नीति बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए। नियुक्तियों में पारदर्शिता रहेगी तो न सरकार आरोपों के घेरे में होगी और न ही युवाओं को रोजगार के लिए यूं जूझना पड़ेगा। उम्मीद करें कि स्कूलों को जल्द नए शिक्षक मिलेंगे और फिर से सरकारी स्कूलों के अच्छे दिन आएंगे।
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इससे जेबीटी शिक्षकों की रोजगार की उम्मीदें फिर जग गई हैं। 2011 में करीब 9500 पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। उसके बाद 2013 में 3200 से अधिक शिक्षकों की भर्ती शुरू हुई थी। इसके बाद प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया लगातार कानूनी पेचीदगी और दांव-पेंच में उलझकर रह गई। स्थिति यह हुई कि प्रदेश में 16 हजार से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हो चुके हैं और अतिथि अध्यापकों के भरोसे ही पांच साल से शिक्षण व्यवस्था चल रही है। कई स्कूलों में तो आधे से अधिक पद खाली पड़े हंै। कुछ स्कूल ऐसे हैं कि एक भी शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। या यूं कहें कि जब कोई है ही नहीं तो व्यवस्था में सुधार की जिम्मेवारी व कार्रवाई तो दूर की कौड़ी ही रह जाएगी।
प्रदेश में भर्ती प्रक्रिया लगातार विवादों का कारण बनती रही है। शिक्षक ही नहीं, कर्मचारी चयन आयोग व हरियाणा लोकसेवा आयोग की भर्तियों का भी यही हश्र हुआ। स्पष्ट नीति के अभाव में लोगों को नियुक्ति के लिए बरसों इंतजार करना पड़ा और अदालती लड़ाई लड़नी पड़ी। नीति में अस्पष्टता व चहेतों को खुश करने की नीति के तहत सरकारें इस तरह का रवैया अपनाती रहीं और इसका नुकसान यह हुआ कि पूरी व्यवस्था ही पंगु होने के कगार पर पहुंच गई। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की केवल हवा में बातें ही होती रहीं। 25 लोगों की शिकायतों के आधार पर यह नियुक्तियां पांच साल तक अटक गईं। सरकार व चयन आयोग उनकी शिकायतों का समाधान शायद तुरंत करते तो उन्हें इस तरह कानूनी लड़ाई न लड़नी पड़ती। कुछ दावेदारों ने तो अपने अंगूठे की जांच प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लिया। अब उन्हें अंतिम अवसर दिया जा रहा है। आवश्यक है कि जिम्मेदार एजेंसियों तमाम प्रक्रियाओं को तेजी से निपटाएं ताकि फिर कोई कानूनी पेचीदगी न अटके और स्कूलों को शिक्षक मिल सकें। साथ ही भविष्य में नियुक्तियों के लिए स्पष्ट नीति बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए। नियुक्तियों में पारदर्शिता रहेगी तो न सरकार आरोपों के घेरे में होगी और न ही युवाओं को रोजगार के लिए यूं जूझना पड़ेगा। उम्मीद करें कि स्कूलों को जल्द नए शिक्षक मिलेंगे और फिर से सरकारी स्कूलों के अच्छे दिन आएंगे।
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